Friday 7 October 2011

HI DOSTON, its a representation of a feeling that you have in mind when all the ridiculous orthodox customs and narrow mindedness of people leaves you no choice but to give up what you desire, inspite of knowing the fact that morally you are much of sane mind and what u want is totally truth and descent


इक तड़प है जो जीने नहीं देती,
इक बैचेनी है जो सोने नहीं देती।

बेबुनियाद बेमानी बेनूर सी बंदिशें हैं,
इक बेबसी है जो जुड़ने नहीं देती।

 चमकीली सी दुनिया का, काला सा चेहरा है,
 इक मायूसी है जो हंसने नहीं देती।

शक की कंटीली बेड़ियों से है रिश्ते जड़े,
इक जंज़ीर है जो मिलने नहीं देती।

प्यार की फ़ुलवारी को किसकी नज़र लगी
इक दीमक है जो खिलने नहीं देती।

मानवता के हर कदम पे, ठोकर लग जाती है
इक हैवानियत है, जो चलने नहीं देती।

ऐ ज़िन्दगी! तू प्यार है पर तुझसे एक शिकायत है,
मैं तेरा हूँ, पर तू किसी को मेरा होने नहीं देती।
~डॉ. पंकज वर्मा. 

Tuesday 20 September 2011

Hi doston, its a representation of a common man' s thinking when he suffers a lot due to his goodness and humanity, still having zeal to win with his holy nature.....SPREAD THE REVOLUTION OF HUMANITY AND LOVE


‘तुम और मैं’

मैं जानता हूँ कि मैं
तुम सा नहीं बन सकता
अपने दिल की बात
तुमसे कह नहीं सकता
क्योंकि है फ़ासले बहुत
जो कम नहीं हो सकते
या शायद कम होना ही नहीं चाहते

छोड़ो अब जाने भी दो
क्यों मुझे बोलने पर
मजबूर करते हो
मैं तो पराया हूँ
मेरा क्या है
तुम तो खुद को भी
खुद से दूर करते हो

आँखें खुली है पर
 देख नहीं सकते
कान हैं मगर
 सुन नहीं सकते
पल पल दूसरे को
गिराने का ही सोचते हो
खुद कितने गिर गये हो
 ये समझ नहीं सकते

एक अजीब सा नशा
तुम पर सवार है
दीवाना सा आलम है
अनजानी पतवार है
कहाँ जा रहे हो, पता नहीं
 और कहते हो
हमसा ना कोई समझदार है

एक दीमक सी लग गयी
है सोच को तुम्हारी
खोखली है असल में
ये हस्ती तुम्हारी

ये खोखली हस्ती
मन्ज़ूर नहीं मुझे
ये तुम्हारी दुर्गती
स्वीकार नहीं मुझे
जानता हूँ, मैं तुम्हारी तरह
शिखर पे नहीं हूँ
संघर्ष तो करता हूँ
पर सफ़ल नहीं हूँ

पर क्या करूँ कि सोच को
अभी दीमक नहीं लगा है
क्या करूँ कि ज़मीर मेरा
अभी सोने नहीं लगा है

नहीं तो मैं भी तुम्हारी तरह
बेहोश हो, बेखबर सा
निकल पड़ता सफ़लता की
अँधी दौड़ में
जहाँ कदम कदम पर मैं
 इन्सानियत को रौंदता
जहाँ मेरा हर कदम
खून से सना होता

नहीं भाई, माफ़ कर दो मुझे
कि इतनी ताकत नहीं मुझमें
कि खुद को ज़िन्दा रखने को
तुम्हें मार दूँ
खुद को आगे बढ़ाने को
इन्सान को पीछे धकेल दूँ

तुम रहो खुश अपने
मुकाम पर कि तुमसे
कोई शिकायत नहीं है
शिकायत खुद से भी नहीं
कम से कम ‘इंसान तो हूँ’

पर भाई जागना होगा तुम्हें
कि ये सही नहीं है
अभी इंसान खोया है
पर सोया नहीं है

ये मत भूलो कि मैं
संघर्ष कर रहा हूँ
जो सब खोये है
उनकी आवाज़ उठा रहा हूँ
कि ये खोखली हस्ती तुम्हारी
कुछ दिनों की मेहमान है
उस सच्चाई का सामना करो
जिसका नाम ‘इंसान’ है

                             जब ये जन संघर्ष
आक्रोश में बदल जायेगा
 तब ये सरफ़रोश हो, तुम्हें
अपने ‘वजूद’ की याद दिलायेगा
और उस दिन भाई
‘तुममें और मुझमें’
कोई फ़र्क नहीं रह जायेगा
~डॉ. पंकज वर्मा.

Thursday 8 September 2011

‘मेरी दुनिया’


इक दुनिया है मेरी प्यारी सी
थोड़ी बेखबर थोड़ी न्यारी सी
जहाँ मैं दुनिया से अनजान हो
हर पल नये ख्वाब बुनता हूँ
मदहोश हो बस दिल की सुनता हूँ
अपना रास्ता खुद ही चुनता हूँ
कोई यहाँ पराया नहीं है
कोई यहाँ ठुकराया नहीं है
हर शख्स यहाँ अपना सा है
नफ़रत की बुरी छाया नहीं है
वजूद अपना किसी ने खोया नहीं है
ज़मीर किसी का यहाँ सोया नहीं है
है ईमान से सब अपना पेट पालते
पाप का बोझ हमने ढोया नहीं है
बस प्यार ही इक इबादत है हमारी
प्यार बाँटना ही फ़ितरत है हमारी
प्यार ही इक रिश्ता जो पनपता है
प्यार ही सिर्फ़ एक ताकत है हमारी

~~डॉ. पंकज वर्मा।

"KHILTA HUA CHEHRA"


वो खिलता हुआ चेहरा तेरा
देखने को जी चाहता है
वो शरमाता हुआ कजरा तेरा
देखने को जी चाहता है

वो तेरी मसूमियत जो
नादान बना देती है
वो तेरी शैतानियाँ
देखने को जी चाहता है

वो तेरी नाराज़गी जो
पल में बैचेन कर देती है
वो पल में तुझे मनाने
को जी चाहता है

वो टूट जाना तेरा
मेरे पहलू में आकर
वो फ़िर तेरे आँसुओं से
भीगने को जी चाहता है

वो प्यार भरे नाज़ुक
हाथों से मुझे खिलाना
वो फ़िर से तेरी उंगली
काटने को जी चाहता है

वो सहम जाना तेरा
मेरे जाने का सोचकर
वो तेरी गोद में महफ़ूज़
होने को जी चाहता है

वो तड़प जाना तेरा
मुझे जाता देखकर
उन तरसती नज़रों को
चूमने को जी चाहता है

वो हर बार मेरे जाने
पर तेरा शिकायत करना
वो फ़िर से तुझे प्यार
देने को जी चाहता है

~डॉ. पंकज वर्मा।