Thursday 8 September 2011

‘मेरी दुनिया’


इक दुनिया है मेरी प्यारी सी
थोड़ी बेखबर थोड़ी न्यारी सी
जहाँ मैं दुनिया से अनजान हो
हर पल नये ख्वाब बुनता हूँ
मदहोश हो बस दिल की सुनता हूँ
अपना रास्ता खुद ही चुनता हूँ
कोई यहाँ पराया नहीं है
कोई यहाँ ठुकराया नहीं है
हर शख्स यहाँ अपना सा है
नफ़रत की बुरी छाया नहीं है
वजूद अपना किसी ने खोया नहीं है
ज़मीर किसी का यहाँ सोया नहीं है
है ईमान से सब अपना पेट पालते
पाप का बोझ हमने ढोया नहीं है
बस प्यार ही इक इबादत है हमारी
प्यार बाँटना ही फ़ितरत है हमारी
प्यार ही इक रिश्ता जो पनपता है
प्यार ही सिर्फ़ एक ताकत है हमारी

~~डॉ. पंकज वर्मा।

9 comments:

  1. Nice presentation.. Check my Hindi poems at
    http://www.belovedlife-santosh.blogspot.com.

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  2. पंकज भाई, शायद आपने ब्‍लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।

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  3. वजूद अपना किसी ने खोया नहीं है
    ज़मीर किसी का यहाँ सोया नहीं है
    है ईमान से सब अपना पेट पालते
    पाप का बोझ हमने ढोया नहीं है
    behtreen panktiyan.... bahut sunder

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  4. dhanyavad doston !!! aap sabki honsla afzai ke liye...........

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  5. Welcome to blogging world.... Best wishes

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