इक बैचेनी है जो सोने नहीं देती।
बेबुनियाद बेमानी बेनूर सी बंदिशें हैं,
इक बेबसी है जो जुड़ने नहीं देती।
इक मायूसी है जो हंसने नहीं देती।
शक की कंटीली बेड़ियों से है रिश्ते जड़े,
इक जंज़ीर है जो मिलने नहीं देती।
प्यार की फ़ुलवारी को किसकी नज़र लगी
इक दीमक है जो खिलने नहीं देती।
मानवता के हर कदम पे, ठोकर लग जाती है
इक हैवानियत है, जो चलने नहीं देती।
ऐ ज़िन्दगी! तू प्यार है पर तुझसे एक शिकायत है,
मैं तेरा हूँ, पर तू किसी को मेरा होने नहीं देती।
~डॉ. पंकज वर्मा.