मुझमें और तुम में ये
फ़ासला क्यों है?
हम एक से हैं पर
फ़िर ये गिला क्यों है?
है मुझमे जुनून ये
जीने का, पर तुझमें
बेबसी लाचारी का ये
सिलसिला सा क्यों है?
हर कदम पर मेरे
साथ है तू हर पल
पर मैं आगे, तू साये सा
पीछे छुपता क्यों है?
है ये मेरी हस्ती
तुझसे ही वफ़ा पाती
पर मैं इतना मगरूर, तू
इतना मजबूर क्यों है?
हम दोनों ही अक्सर
हैं भूख से बिलखते,
पर मेरे हाथ में रोटी,
तेरे हाथ में ये पानी क्यों है?
इक दिन दोनों की निगाहें
धुंधली हो जायेंगी
पर मेरे पास ये चश्मा
तेरे पास ये लाठी क्यों है?
वक़्त की तेज़ धूप
दोनों को ही छकाती हैं
पर तेरे चेहरे पर
ये झुर्रियां सी क्यों है
मैं भी इंसा
तू भी इंसा
पर, तेरे पास ही
ये इंसानियत क्यों है
मैं सबकुछ पाकर
खुश नहीं और तू,
कुछ ना पाकर,
आखिर में ये अन्जाम,
ये मुकाम,
एक सा क्यों है?
~ डॉ. पंकज वर्मा।
nice one.........................
ReplyDeleteमैं सबकुछ पाकर खुश नहीं और तू,कुछ ना पाकर,
ReplyDeleteआखिर में ये अन्जाम,ये मुकाम,एक सा क्यों है?
वाह क्या खूब !
लाजवाब बेह्तरीन
लिखते रहो!