Thursday 15 August 2013

"आज़ादी के साल "




है आज़ाद हुए हमें गुज़रे कई साल,
खोया है वजूद हमारा साल दर साल

है इंसा आज भी हिन्दू-  मुसलमान, उत्तर और दक्षिण का
जानवरों से बदतर है बेगुनियद ग़ुलामी का हाल..........









है भारत जहाँ , वहां कोई भी  भारतीय नहीं है,
बुना  है सबके दिलों में , बेईमानी का जाल..........


आज़ाद करो खुदको खुदगर्जी की सलाखों से
वरना चंद पन्नों में दफ्न हो जायेंगे ये आज़ादी के साल ..............