है आज़ाद हुए हमें गुज़रे कई साल,
खोया है वजूद हमारा साल दर साल
है इंसा आज भी हिन्दू- मुसलमान, उत्तर और दक्षिण का
जानवरों से बदतर है बेगुनियद ग़ुलामी का हाल..........
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है भारत जहाँ , वहां कोई भी भारतीय नहीं है,
बुना है सबके दिलों में , बेईमानी का जाल..........
आज़ाद करो खुदको खुदगर्जी की सलाखों से
वरना चंद पन्नों में दफ्न हो जायेंगे ये आज़ादी के साल ..............