Thursday 8 September 2011

"KHILTA HUA CHEHRA"


वो खिलता हुआ चेहरा तेरा
देखने को जी चाहता है
वो शरमाता हुआ कजरा तेरा
देखने को जी चाहता है

वो तेरी मसूमियत जो
नादान बना देती है
वो तेरी शैतानियाँ
देखने को जी चाहता है

वो तेरी नाराज़गी जो
पल में बैचेन कर देती है
वो पल में तुझे मनाने
को जी चाहता है

वो टूट जाना तेरा
मेरे पहलू में आकर
वो फ़िर तेरे आँसुओं से
भीगने को जी चाहता है

वो प्यार भरे नाज़ुक
हाथों से मुझे खिलाना
वो फ़िर से तेरी उंगली
काटने को जी चाहता है

वो सहम जाना तेरा
मेरे जाने का सोचकर
वो तेरी गोद में महफ़ूज़
होने को जी चाहता है

वो तड़प जाना तेरा
मुझे जाता देखकर
उन तरसती नज़रों को
चूमने को जी चाहता है

वो हर बार मेरे जाने
पर तेरा शिकायत करना
वो फ़िर से तुझे प्यार
देने को जी चाहता है

~डॉ. पंकज वर्मा।

6 comments:

  1. vaah! kya chahat hai jisne kavita ka roop liya behatreen..
    likhte raho nikhar aayega.. dhanyavaad.

    ReplyDelete
  2. यहाँ भी बेहद सुन्दर शब्द।

    ReplyDelete
  3. behad khoobsurat kavita sir.......
    meri bhi ek kavita hai ji chahta hai......mauka milega toh likhunga blog par,aj se kareeb 3 4 saal pehle likhi thi......
    aayiye kabhi mere blog par bhi.....
    www.amitsendane.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. कोमल ,खूबसूरत एहसास.

    ReplyDelete
  5. भावना शुन्य होते जा रहे संसार में आप जेसा डॉक्टर समाज की जरूरत हे.

    ReplyDelete