थक गया है राही, उसे सो जाने दो अब चलना दुष्कर है उसे सो जाने दो। कदम दर कदम काँटों से झुलसा है वो , थोड़ा सुकून आ जाये , उसे सो जाने दो। आँखों में आस लिए , झपकी नहीं है पलके आँख न भर आए , उसे सो जाने दो। रास्ते की आंधी से , सन गया है तन उसका ज़रा तूफान थम जाये , उसे सो जाने दो। मंज़िल की चाह में बहुत दूर तक चलता रहा , अभी भी सफर है बाकी , उसे सो जाने दो। ऐसा नहीं कि , होंसला पस्त हो गया है थोड़ा मन उदास है, उसे सो जाने दो। दुनिया के हर रंग से वाक़िफ़ हो चुका है वो खुद बेरंग न हो जाए, उसे सो जाने दो। सपने उसके सफर में पीछे खो गए हैं , नया सपने सज जाये उसे सो जाने दो। मंज़िल तक आते आते शायद सांस टूट जाये अभी उसमे साँसे हैं , उसे सो जाने दो। कुछ नहीं माँगा कभी , सफर में कारवां से। राही की फरियाद है उसे सो जाने दो....... सो जाने दो ....
- डॉ पंकज वर्मा
"नज़र "
तेरी नज़रों के नूर को नज़र करने से डरता हूँ। ... डरता हूँ ......... कहीं झुक के कल कल बह न जाए, ये झील सी नज़रें हया के नीर से । डरता हूँ ........ चंदा की चांदनी के आगोश में समाकर, जैसे सागर, होश खो अपनी सीमाएं भूल जाता है । कहीं मैं भी.......... तेरी आँखों के उजाले के आगोश में समाकर , अपनी मर्यादा भूल न जाऊं । डरता हूँ ....... तेरी पलकों की चिलमन के घने साये में कहीं मैं खुद ही नज़रबंद न हो जाऊं । कहीं भूल न जाऊं , कि तेरी आँखों से अलग इक दुनिया भी है , जिसका मैं हिस्सा हूँ । कभी पतझड़ कभी सावन सा जीवन का किस्सा हूँ । नादाँ सा रही हूँ, मंज़िल अभी दूर हैं, खुद ही भटक जाऊं राह तो मंज़िल का क्या कसूर है । ऐ नूर ..... ज़रा, नैनो का नूर दे दे , तेरे नूर को इन नैनो का नूर बना लूंगा । जब जब नज़रें झुकेंगी, तुझे नज़र कर लूंगा ..... तुझे नज़र कर लूंगा ...... तुझे नज़र कर लूंगा.....