"मुसाफिर "
वक़्त बदल रहा है , लोग बदल रहे हैं
रास्ते बदल रहै हैं , मंज़िलें बदल रही हैं
बदल गया हूँ मैं , नजरिया बदल गया हैं
सोच बदल गयी है, माहौल बदल गया है
मन जो झकझोर देती थी
अब हज़ारों गीत मिलकर भी
मन के खालीपन को भर नहीं पाते
किसपे ऐतबार करूँ दुनिया के मेले में
लोगों कि आदत है
इस्तेमाल करते हैं , छोड़ देते हैं
कोई चीज़ अपनी हो तो ठीक है
संपन्न हो तो सब खुशनुमा हसीन हैं
ग़म के साये में मुँह मोड़ लेते हैं ,
कब तक सहूँ ईर्ष्या कि कड़वाहट को ,
अब तो आंसू भी साथ छोड़ देते हैं ।
यहाँ हर शख्स बदलाव चाहता है ,
लोगो में, मौसम में ,
दुनिया में , माहौल में
भूल जाता है , गर बदलना है तो
जो दुनिया को बदलने कि तमन्ना रखता है ।
भूल जाता है, दूसरे के पास भी मन है जो
तुम्हे बदलने कि तमन्ना रखता है ।
माना आज तुम बेसहारा नहीं हो, लाचार नहीं हो
किसी के अत्याचारो से चकनाचूर नहीं हो ।
पर कल किसने देखा है
कल क्या बदल सकोगे तुम ?
बदल पाओगे लोगो कि अट्टाहस भरी नज़रो को ?
कड़वी ज़ुबान को ? तुम्हे रोंदते पैरों को ?
नहीं , नहीं बदल सकते तुम दुनिया के उसूलो को ।
वही सहता है, वही कराहता है
वही तरसता है, वही तड़पता है
गरीब नहीं बदलते,
ना ही बदलते हैं वो आसुओं के खरीददार
गर चाहूं मैं इसको बदलना
मिटटी का क़र्ज़ चुकाना
तो लोगो कि गालिया सामने आ जाती हैं ।
क्यों ?
परंपरा नहीं बदलती ,
सोच नहीं बदलती
।
क्या बदल पाऊंगा मैं ?
लोगो कि सोच को
लोगो कि सोच को
जो सिर्फ स्वार्थ सोचती है
ईर्ष्या को नफरत को जो सिर्फ नाश सोचती है ,
द्वेष को क्रोध को जो लोगो को अँधा बना देती है ।
हाँ , यही है इस अंधी दुनिया कि चाहत !!!
शायद मेरी आँखें खुली है जो
देख सकती है वो सब कुछ जो
बदलना चाहते है मुझे भी
ताकि मैं भी अँधा हो जाऊं
बहरा हो जाऊं , गूंगा हो जाऊं
ताकि फिर कुछ बदलने
का सामर्थ्य मुझमे न रहे
कैसे बदलोगे तुम , मेरे संस्कारों को ?
कैसे बदलोगे साँसों के तारों को ?
जिनमे प्रेम, दया , करुणा का
हर पल गुंजन रहता है ।
शायद ये मानसिक संघर्ष
यूँ ही ज़ारी रहेगा ,
पवित्रता और मलीनता का ,
युद्ध चलता रहेगा ।
देखना है कल क्या बदलता है ?
राही बदलता है या कारवां बदलता है ।
लोग बदलेंगे, सोच नहीं बदलेगी
पल पल तानें देती चोंच नहीं बदलेगी ।
एक ही आस है ……
मुस्कुराकर दुआ करो कि मुसाफिर का
मंज़िल न बिखरे ….
मुसाफिर न बदले………
- डॉ पंकज वर्मा