Monday 20 April 2020


"नज़र "



तेरी नज़रों के नूर को 
नज़र करने से डरता हूँ। ... 

डरता हूँ ......... 
कहीं झुक के कल कल 
बह  न जाए, 
ये झील सी नज़रें 
हया के नीर से ।

डरता हूँ ........
चंदा की चांदनी के 
आगोश में समाकर, 
जैसे सागर,  होश खो 
अपनी सीमाएं भूल जाता है ।
कहीं मैं भी..........
तेरी आँखों के उजाले के 
आगोश में समाकर ,
अपनी मर्यादा भूल न जाऊं ।

डरता हूँ .......
तेरी पलकों की चिलमन 
के घने साये में 
कहीं मैं खुद ही नज़रबंद न हो जाऊं 
कहीं भूल न जाऊं , 
कि तेरी आँखों से अलग इक दुनिया भी है , 
जिसका मैं हिस्सा हूँ 
कभी पतझड़ कभी सावन सा 
जीवन का किस्सा हूँ ।

नादाँ सा रही हूँ, 
मंज़िल अभी दूर हैं, 
खुद ही भटक जाऊं राह 
तो मंज़िल का क्या कसूर है ।

ऐ नूर .....
ज़रा, नैनो का नूर दे दे ,
तेरे नूर को इन नैनो का नूर बना लूंगा ।
जब जब नज़रें झुकेंगी, 
तुझे नज़र कर लूंगा .....
तुझे नज़र कर लूंगा ......
तुझे नज़र कर लूंगा.....

                                                                                                                -डॉ पंकज वर्मा 

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